Madhu Arora

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सब अपनी मैं ही दुश्मन

सब अपने में ही दुश्मन

मैं मेरी को नहीं छोड़ता,
इसमें ही उलझा रहता है।
अपने अंह में डूबा रहता,
कहाँ किसी की सुनता है।

मैं तो नहीं रही किसी की,
साथ कुछ भी नहीं गया
सोने की लंका धरी रही,
सिकंदर खाली हाथ गया।

अपना मैं खराब सब करता,
क्यों तू इसमें उलझा रहता।
समझे नहीं किसी को ज्ञानी,
अभिमान तू बड़ा करता।

घमंड करता  किस चीज का प्यारे,
कुछ भी तेरे बस में नहीं।
जिसने अपनी मै ना छोड़ी,
पाया उसने कुछ भी नहीं।

सब अपने हैं मैं ही दुश्मन,
हास्य पात्र बन जाता हूं।
करता सबकी परवाह देखो,
बुरा फिर भी  कह लाता हूं।

सब अपने हैं मैं ही दुश्मन
बात यहीं बस मन आती।
छोड़ो इन सब बातों को,
अपना रवैया बदल लो तुम।

बुरी लगे जो बात किसी की,
माफ करो अब जाने दो
अपना में ही दुश्मन बड़ा,
उसमें मैं को खो जाने दो।

         रचनाकार ✍️
         मधु अरोरा
         19.9.2022

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7 Comments

Suryansh

29-Sep-2022 06:37 AM

बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना

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बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ,,,, जिसने अपनी मैं न छोड़ी,,, मै को मैं करें जी

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Swati chourasia

20-Sep-2022 01:18 PM

Very nice

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